Saturday, November 23, 2024

राष्ट्रीय

विदेशी फंडिंग वाली इन संस्थाओं का विरोध कीजिए, वरना कल को बड़ों के पाँव छूना भी कहलाएगा ‘अंधविश्वास’; देखिए वीडियो

SG

महंत धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर विवाद होना कोई नयी बात नहीं, वास्तव में हिन्दुओं को जागृत करने का शंखनाद किया था बाबा रामदेव ने। आधी रात को अनर्थ करने गए लोगों की बुद्धि ऐसी भ्रष्ट हुई कि  टैंटों में जाने में जाने से पहले से बिजली काट घुसने पर क्या हुआ, यह तो वही अपने श्रीमुख से बताएं तो अधिक उचित होगा। खैर, धीरेन्द्र की भांति बाबा का भी खूब विरोध हुआ था, परिणाम 2014 चुनावों में विरोधियों को धूल चाटने के लिए विवश होना पड़ा और आज तक धूल ही चाट रहे हैं। अब धीरेन्द्र का उठ रहा विवाद क्या 2024 में विरोधी मोदी को 350+ पार करवाएगी? आभास ऐसा ही हो रहा है। यह भी संभव हो सकता है 2024 चुनाव देश में हुए  प्रथम चुनाव को दोहराएगा? जिस तरह उस समय कोई मजबूत विपक्ष यानि हिन्दू महासभा नहीं था, वही स्थिति आज है। मोदी विरोधियों का दिलो-दिमाग इतना अधिक भ्रष्ट हो चूका है कि हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तकों का अपमान करने से हिन्दुओं में शंका घर करने लगी है कि अगर यही हाल रहा तो विरोधियों की वर्तमान पीढ़ी के अलावा भावी पीढ़ी भी उन्हें पहचानने से इंकार न कर दें।

याद करिए, बाबा रामदेव के पदापर्ण से पहले विदेशी कंपनियां नमक, हल्दी, तेल और कोयला आदि से मंजन करने के दुष्प्रभावों से डराने के साथ-साथ सरसों के तेल से होने वाले शरीर को नुकसान से जनता को डराया जा रहा था, जिसका इन विदेशी के गुलाम विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) भी समर्थन कर रहा था। आज वही विदेशी कंपनियां हैं जो बाबा रामदेव के पदचिन्हों पर चल टूथ पेस्ट बना रही हैं। कल तक जो डॉक्टर सरसों का तेल इस्तेमाल न करने की सलाह देते थे, आज कहते हैं refind की बजाए सरसों का तेल खाओ।
दूसरे, महंत धीरेन्द्र द्वारा या कहना कि “तुम मेरा साथ दो, मै हिन्दू राष्ट्र बनाऊंगा”, विषय समझ और नसमझ(eye or no eye) का है। यह तो वर्षों पूर्व ही भविष्यवाणी कर दी गयी थी कि 2014 चुनाव के बाद भारत पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। भारत विश्वगुरु बन भगवा फहराएगा। हमें तुष्टिकरण की पुजारी सरकारों द्वारा पढ़ाया गया गलत इतिहास ही देश में सांप्रदायिक दंगे होते रहे। मुग़ल आक्रांताओं को महान बताया गया, जो सरासर गलत है।

मुग़ल आक्रांताओं को महान बताने वालों से पूछिए कि अकबर मीना बाजार क्यों लगाता था? इस अय्याशी के बाजार में किसी भी उम्र के लड़के पर पाबन्दी थी, लेकिन अय्याश अकबर बुर्के में खूबसूरत और हसीन लड़की/औरत को देखते ही बुर्के में साथ चल रहे अपने सिपाहियों को उसे हरम में ले जाने के लिए कहता। इस अय्याशी के इस बाजार को बंद करवाने वाली वह राजपूत महिला किरण देवी कौन है? जब इस महिला ने अकबर को ज़मीन पर पटककर छाती पर पैर रख कटार निकलते अय्याश ने इस राजपूत से अपनी ज़िंदगी की भीख मांगते हुए हरम में कैद सभी महिलाओं को आज़ाद कर, अय्याशी बाजार यानि मीना बाजार लगाना बंद किया था। देखिए वीडियो

प्रमाण देखिए, नाथूराम गोडसे पर बनी फिल्म का कट्टरपंथियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। क्यों? जानते है क्यों, क्योकि मुस्लिम कट्टरपंथी और तुष्टिकरण पुजारी सच्चाई सामने आने से डर रहे हैं। और जो लोग गोडसे को पहला आतंकवादी कहते हैं, इनसे पूछो कि महात्मा गाँधी की किस साल हुई थी? और स्वामी श्रद्धानन्द की किस वर्ष हुई थी? दूसरे “रंगीला रसूल” के लेखक राजपाल की हत्या किस वर्ष हुई थी? तुष्टिकरण जनक गाँधी दोनों ही बार कातिलों के बचाव में नज़र आये थे। स्मरण हो, स्वामी श्रद्धानन्द और राजपाल की मुसलमानो द्वारा मॉब लिंचिंग में हत्या हुई थी, यानि पहला आतंकवादी कौन हिन्दू या मुसलमान? मॉब लिंचिंग किसकी देन है? आज क्यों उसी मॉब लिंचिंग पर सियापा किया जा रहा है? आइने में असलियत देख क्यों डर लग रहा है? आज victim card खेलने में शर्म क्यों नहीं आती? वैसे बेशर्मों और शैतानों को किस बात की शर्म?  देखिये वीडियो

इन भड़काऊ नेताओं से यह भी पूछो कि 1. क्या कारण था कि कोर्ट ने गोडसे को माइक से बयान पढ़ने की क्यों दी थी? यह विश्व इतिहास है। 2. गोली लगने के बाद 40 मिनट तक गाँधी जीवित थे, क्यों नहीं उन्हें निकटतम तत्कालीन विलिंग्डन वर्तमान डॉ राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल लेकर गए? 5. क्या कारण था कि कोर्ट में दर्ज गोडसे के 150 बयान सार्वजानिक होने पर प्रतिबन्ध लगाया था? 6. 1984 सिख दंगों पर हर पार्टी छाती पीटती नज़र आती है, लेकिन गाँधी द्वारा स्वर्ग सिधारते ही आज़ाद भारत का सबसे भयंकर नरसंहार चितपावन ब्राह्मणों का हुआ था, क्यों नहीं आज तक जाँच करवाई गयी? 7. क्यों नहीं दोषियों को फांसी की मांग हुई? 8. गोडसे के 150 सुनने के बाद क्यों जस्टिस खोसला को कहना पड़ा कि ‘अगर कोर्ट में और कोर्ट से बाहर मौजूद सभी लोगों को जज बना दिया जाये, सभी यही कहेंगे गोडसे निर्दोष है’, तारीख पर हज़ारों की संख्या में लोग कोर्ट पहुँचते थे। गोडसे से बयानों को  साहित्य सदन, नई सड़क, दिल्ली से खरीद कर पढ़ सच्चाई का बोध करने पर गोडसे को आतंकवादी बताने वालों को जितना अपमानित किया जा सकता है, करिए।

प्रतिदिन सूर्योदय होना भी चमत्कार है। फिर सूर्य का अस्ताचलगामी हो जाना भी चमत्कार है। बुद्ध ग्रह पर 243 दिनों का तक सूर्य का अस्त न होना भी चमत्कार है और बृहस्पति पर 10 घंटे में ही दिन-रात का बीत जाना भी चमत्कार है। आप कहेंगे कि ये ग्रह तो स्पिन हो रहे हैं अपने ही अक्ष पर, तो मैं कहूँगा कि ये भी चमत्कार है। आप इसके पीछे विश्व ज्यादा इनर्शिया, मोशन और ग्रेविटी समझा देंगे, मैं इसे भी चमत्कार बता दूँगा।

इसीलिए, समस्या ये नहीं है कि कोई चमत्कार करता है, बल्कि मुद्दा ये है कि आपकी नज़र में चमत्कार क्या है। एक अँधे को आँख आ जाने पर उसे जो दुनिया दिखाई देती है, वो चमत्कार ही चमत्कार है। हमने टीवी शोज में कई ऐसे मनोवैज्ञानिक देखे हैं, मन को पढ़ने वाले देखे हैं जो सामने वाले के भावों को तुरंत बता देते हैं। ये एक अध्ययन है, अभ्यास है, कला है। कभी शत-प्रतिशत सही भी हो सकता है तो कभी ऐसा भी हो सकता है कि कोई अनुमान ही न लग पाए।

ऐसे व्यक्ति को सारा सेटअप अपने हिसाब से चाहिए होता है, माहौल अनुकूल चाहिए होता है। जैसे Astrology विज्ञान है, वैसे ही मनोविज्ञान भी है। अगर कोई किसी के मन को पढ़ कर भगवान से उनके लिए प्रार्थना कर रहा है, अब ये चमत्कार है तो है। ये वही ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ है, जिसने मदर टेरेसा की तारीफ़ की थी और कहा था कि वो अनाथों, बुजुर्गों और रोगियों की काफी मदद करती हैं। ये वही समिति है, जिसने जल में प्रतिमा विसर्जन के विरुद्ध अभियान चलाया था।

ये वही संस्था है, जिसे विदेश से फंडिंग प्राप्त होती है और इसे छिपाने के लिए उसे केंद्र सरकार से नोटिस भी जारी हुआ था। विदेश से इस संस्था को फंडिंग किसलिए आ रही है, सोचने वाली बात है। आज अगर हमने इनका विरोध नहीं किया तो कल को ऐसी संस्थाएँ बहुतायत में खड़ी हो जाएँगी और कहेंगी कि मंदिरों का अस्तित्व ही अंधविश्वास है और बड़ों के पाँव छूना भी अंधविश्वास है। आप उसके पीछे का विज्ञान साबित करते रह जाएँगे और ये एक कानून पारित करवा कर ऐसी चीजों को प्रतिबंधित भी करवा दें तो कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।

हाँ, पादरियों के सामने पागल बन कर नाच करना और दरगाहों पर चादर चढ़ाना इसकी श्रेणी में नहीं आएगा। असली समस्या ये है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के गरीब व जनजातीय इलाकों में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को वहाँ के एकाध लोग कम कर रहे हैं। एक राजपरिवार से है, एक संत है। घर-वापसी के इन अभियानों ने उस खेमे की बेचैनी बढ़ा दी है, जिसे सबसे ज्यादा विदेशी फंडिंग प्राप्त होती है। उनके ‘चमत्कार’ से अवाक होकर जो लोग उधर जाते हैं, उन्हें इधर रोकने के लिए भी थोड़ा ‘चमत्कार’ आवश्यक है।  

एक वर्ग के मन में ये भाव रहना चाहिए कि साधु-संतों के सामने ये पादरी कुछ भी नहीं हैं। जिस इलाके से पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आते हैं और जैसे लोगों को उन्हें सनातन में रोक कर रखना है, ‘चमत्कार’ उनकी मजबूरी भी है और कलाकारी भी। अब समस्या तो यहाँ ये रह भी नहीं गई है कि वो जो करते हैं उसे चमत्कार कहा जाए या नहीं। समस्या ये है कि आप किसकी तरफ हैं – ईसाई मिशनरियों के या फिर बागेश्वर धाम सरकार के? एक 27 वर्ष का युवक इतना बड़ा कार्य कर रहा है तो उसका समर्थन तो बनता है।

कम से कम व्यास पीठ से अली मौला करने वालों और ‘दम-दम अली अली’ पर नाचने वालों से तो वो बेहतर है (हालाँकि, विरोध मैं ऐसे कथावाचकों या संतों का भी नहीं करता, क्योंकि अगर वो कुछ बहुत अच्छा वृहद् स्तर पर कर रहे हैं तो हल्का-फुल्का विरोध कर के इन चीजों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है)। अक्सर जो नास्तिक होते हैं वो ये चुनौती देते हैं कि ईश्वर का अस्तित्व साबित कर के दिखाओ। असली चुनौती उन्हें दी जानी चाहिए कि वो ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का सबूत दें, साबित करें।

इससे पूरा मुद्दा ही बदल जाता है। ऐसे ही धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर आरोप लगाने वालों को उन्होंने भी चुनौती दी है कि ‘दरबार’ में आएँ और उन्हें गलत साबित करें। जो समर्थन कर रहे हैं उन्हें साबित करने की ज़रूरत ही नहीं है कि वो चमत्कार करते भी हैं नहीं। असल में चमत्कार कुछ नहीं है, ये तो अध्यात्म है या फिर विज्ञान। तुलसीदास के घर रामचरितमानस की चोरी करने गए लोगों को वहाँ तीर-धनुष लिए 2 लोग कुटिया की रक्षा करते दिखे थे।

इसी आसपास के जमाने में एक योगी ऐसे थे जो महीनों तक नदी में तैरते रहते थे। शंकराचार्य से लेकर महावतार बाबाजी तक, चमत्कार और रहस्य तो भरे परे हैं। पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की पीढ़ियाँ वहाँ पर सिद्धि करती आई हैं और छत्तरपुर की उस धरती पर हनुमानजी विराजमान हैं। वहाँ जाकर उनकी बातें सुनना, भगवान का दर्शन करना और पीठाधीश्वर द्वारा अपने लिए प्रार्थना करवाने में गलत कुछ भी नहीं है।ताज़ा घटनाक्रम से उनका फायदा ही हुआ है, न सिर्फ उनके भक्तों/समर्थकों की संख्या बढ़ेगी बल्कि धाम पर पहुँचने वालों की तादाद में भी वृद्धि होगी।

जो उन्हें न मानते हों ये पोंगा-पंडित ही समझते हों, घर-वापसी के अभियान के लिए उनका समर्थन तो कर ही सकते हैं। जो ये भी नहीं कर सकते, वो बागेश्वर बालाजी के दर्शन तो कर ही सकते हैं। जिनकी हनुमानजी में भी आस्था नहीं, अब उनके बारे में क्या ही कहना! तुलसीदास ने भी कहा है – “कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।” अर्थात, कलियुग में ईश्वर का नाम लेने भर से काम हो जाएगा, वेद-वेदाङ्ग का अध्ययन करने का समय न तो।

अगर बागेश्वर धाम के महंत के कहने पर कुछ लोग हनुमान और राम का नाम ही ले रहे हैं तो ये बहुत बड़ी बात है। जनजातीय और गरीब वर्ग को ये एहसास दिलाना है कि सनातन ही श्रेष्ठ है। एक तरफ पादरियों का ‘हल्लिलूय्याह’ है, एक तरफ बालाजी का नाम। एक तरफ भक्ति है, एक तरफ लालच। एक तरफ घर-वापसी है, एक तरफ धर्मांतरण। एक तरफ राष्ट्रभक्ति है, एक तरफ विदेशी फंडिंग। एक तरफ एक निर्दोष और सरल साधु है, एक तरफ चालबाज मिशनरी।