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पराजय के जब झटके लगने लगते हैं तो भारतीय जनता पार्टी अपने वर्चस्व का खेल शुरू कर देती है। अब भी उसने हिंदू-मुसलमान का खेल शुरू कर दिया है। देशभर के हिंदू अचानक ‘खतरे’ में आ गए हैं और धर्मांतरण विरोधी कानून, ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा और उसके मिंधे गुट ने मुंबई में ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ निकाला। कहा जाता है कि कई हिंदुत्ववादी संगठन इस मोर्चे में शामिल हुए, लेकिन सबसे आगे भारतीय जनता पार्टी के लोग थे। ‘हम सब बतौर हिंदू इस मोर्चे में शामिल हुए हैं,’ ऐसा इस मंडल की ओर से घोषित किया गया लेकिन यह मोर्चा व आंदोलन यानी खुद की नामर्दानगी पर पर्दा डालने का एक रूप था। महाराष्ट्र और केंद्र में प्रखर हिंदुत्ववादी सरकार है। तो हमारा हिंदुत्व खतरे में आता ही कैसे है? पिछले आठ साल से केंद्र में मोदी-शाह का राम राज चल रहा है और उनके ही लोग कहते हैं कि ये राज हिंदुओं का स्वर्ग है। फिर भी हिंदुओं का ‘आक्रोश मोर्चा’ निकले, इसे आश्चर्य ही कहा जाएगा। इससे पहले के समय में मुस्लिम समुदाय कहता था कि ‘इस्लाम खतरे में है’। अब हिंदुत्ववादी आदि कहलानेवाले शासन में ‘हिंदू खतरे में’ हैं, ऐसा कहने का समय हिंदुओं पर आ गया है। अगर केंद्र या महाराष्ट्र में ‘मुस्लिम लीग’ अथवा ‘एमआईएम’ जैसे लोगों का शासन होता, तो ‘हिंदू आक्रोश मोर्चा’ समझ में आता। अगर सवाल ‘लव जिहाद’ और जबरन धर्मांतरण का है तो इस पर कानूनन चर्चा होनी ही चाहिए। नहीं, इसके बारे में सख्त कानून बनना चाहिए। इस बात को लेकर किसी के मन में कोई संदेह नहीं है, लेकिन जब किसी चुनाव का बिगुल बजता है तो भाजपा शासित राज्यों में अचानक हिंदू ‘खतरे’ में आने की हलचलें शुरू हो जाती हैं। गुजरात, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्यों में हिंदुत्व ‘खतरे’ में है, तो यह शासन का दोष है। हाल ही में नांदेड़ में एक भयानक मामला सामने आया। मेडिकल की पढ़ाई कर रही एक छात्रा की उसके ही परिजनों ने हत्या कर दी। युवती का प्रेम-प्रसंग परिजनों को स्वीकार नहीं था। इस प्रेम-प्रसंग का ‘लव जिहाद’ से कोई संबंध नहीं था। फिर भी लड़की के पिता, भाई ने समाज में बदनामी होने के गुस्से में लड़की की बेरहमी से हत्या कर दी। नांदेड़ महाराष्ट्र में है, ये ‘हिंदू जन आक्रोश’ के लोगों को समझना चाहिए। नांदेड़ जैसे कई मामले महाराष्ट्र और देश में होते हैं। यह एक तरह की विकृति है। इस सामाजिक विकृति के खिलाफ सभी को लड़ना चाहिए। यदि ‘हिंदू जन आक्रोश’ केवल चुनाव या राजनीतिक लाभ के लिए है, तो यह हिंदुत्व के प्रति बेईमानी साबित होगा। धर्मांतरण का मुद्दा गंभीर है। लालच देकर धर्मांतरण के कई तरीके हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण न केवल एक गंभीर मुद्दा है, बल्कि यह देश की सुरक्षा को भी प्रभावित करता है। लेकिन फिर भी सवाल वही है कि देश में प्रखर हिंदुत्ववादियों का शक्तिशाली शासन होने के बावजूद ये जबरन धर्मांतरण क्यों हो रहे हैं? यह वर्तमान शासकों की नाकामी है और उस विफलता के विरोध में अगर हिंदू मुंबई में सड़कों पर उतरे हैं तो इसमें गलत क्या है? हिंदू समुदाय का आक्रोश यानी मुंबई में जुटा राजनीतिक गुटों का आक्रोश नहीं। कश्मीर घाटी में आज भी हिंदू पंडितों का पलायन जारी है, पंडितों की हत्या बंद नहीं हुई है और हजारों हिंदू पंडित जम्मू की सड़कों पर न्याय के लिए आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। उन्हीं पंडितों का आक्रोश मन में जुटाकर मुंबई में हिंदुओं का जन आक्रोश उमड़ा होगा तो दिल्ली में बैठे शक्तिमान हिंदू शासक इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते। हिंदू आक्रोश का एक प्रमुख कारण सामने आया है, वह यानी मौलाना मुलायम सिंह का ‘हिंदू’ सरकार द्वारा किया गया सम्मान। गणतंत्र दिवस पर मोदी सरकार ने मुलायम को पद्म विभूषण से सम्मानित किया। यह उन हजारों कारसेवकों का अपमान है, जिन्होंने राम मंदिर के लिए बलिदान दिया है। क्योंकि इन हिंदू कारसेवकों को गोली मारने का आदेश मौ. मुलायम ने दिया था, उनका राष्ट्रीय सम्मान करने पर ही हिंदू जन आक्रोश भड़क उठा और शिवसेना भवन के सामने एकत्र हो गया। इन सबका शिवसेना के प्रति ‘लव’ है और दिल्ली की ढोंगी हिंदू सरकार के खिलाफ ‘जिहाद’ है। इसलिए ‘लव जिहाद’ के खिलाफ उनका आक्रोश भी अहम है। अच्छा हुआ कि हिंदुओं ने अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए शिवसेना भवन का परिसर चुना। इसका मतलब एक ही है, आज भी सभी हिंदुओं के लिए शिवसेना और शिवसेना भवन ही एकमात्र और आखिरी आशास्थान है। इसलिए उनके आक्रोश को निश्चित रूप से न्याय मिलेगा। शक्तिमान हिंदू महाशक्ति के भले ही कान बहरे हो गए हैं फिर भी शिवसेना भवन निश्चित ही हिंदुओं के इस आक्रोश को संज्ञान में लेगा।