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हिन्दुओं आंखें खोलो, विधर्मियों को उनकी औकात दिखाने का समय आ गया है। सनातन धर्म विरोधी सनातन देवी-देवताओं के चमत्कारों से या तो अज्ञान हैं या फिर उनके चमत्कारों को नज़रअंदाज़ कर सनातन धर्म को बदनाम करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
आज विज्ञानं के विकसित होने से हमने चिकित्सा में कई उपलब्धियाँ जरूर प्राप्त कर ली हैं, लेकिन उतने पीछे भी चले गए हैं। आज महिला के गर्भवती होने पर लिंग मालूम करने अल्ट्रासाउंड के लिए जाते हैं, वैसे तो लिंग मालूम करना अपराध घोषित कर दिया गया है। जबकि लिंग धारण का घर पर ही मालूम किया जा सकता है। दूसरे, आज चिकित्सक मरीज से बीमारी पूछता है, जबकि एलोपैथी से पूर्व जब आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली थी, तब वैद्य मरीज से हाल पूछने की बजाय उसकी नब्ज पढ़कर बीमारी बता दिया करते थे। किन्तु आज के वातावरण में परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज ईलाज बाद में होता है, टेस्टिंग पहले। और कई स्थितियों में टेस्टिंग टेस्टिंग में ही मरीज की राम नाम सत्य हो जाती है। इस सच्चाई से कोई इंकार भी नहीं कर सकता। टेस्टिंग की दुकानें डॉक्टर के सहारे ही तो चल रही हैं। जहाँ इन दोनों की कमाई और मरीज की जेब पर कैंची। अब तो हाल ये है कि हॉस्पिटल में भी बाहर से टेस्टिंग बताई गयी लैब से ही करवाने के लिए कहा जाता है।भारत देश जो सृष्टि की रचना से लेकर आज तक देवी-देवताओं की अनोखी विविधताओं से फलीफूत है, जिसे पश्चिमी सभ्यता एवं आधुनिकता की अंधी आँधी ने अनदेखा कर दिया। आध्यात्मिक ज्ञान क्या होता है, उससे अज्ञान हैं। हमने मिसाइल एवं परमाणु आदि बनाने पर छाती चौड़ी कर रहे हैं, लेकिन भूल गए कि यह तो भारत में पहले ही से विराजमान हैं। उदाहरण है , रामायण और महाभारत का युग, जहाँ तीरों से आग के शोले निकलते थे, राजा दशरथ शब्दभेदी बाण चलाते थे। राजा दशरथ के बाद इस तकनीक में निपुण थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान। इसी शब्दभेदी निपुणता से जल्लाद मोहम्मद गौरी द्वारा सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दोनों आंखें फोड़ने के बाद राष्ट्रकवि चंद्र वरदाई की कविता ने चौहान को सिंहासन पर बैठे गौरी की गर्दन की दूरी और सिंहासन की ऊंचाई बताते ही सीधा गर्दन पर तीर मार 72 हूरों के पास भेज दिया था। फिर कवि चंद्र वरदाई ने सैनिकों के पास आने से पहले ही अपनी कटार निकाल पहले अपने सम्राट और फिर अपने मार दोनों स्वर्ग सिधार गए।
भारत में कई ऐसे शक्तिशाली मंदिर है जिनके बारे में जानकर आश्चर्य होता है। ये इंडिया है, और यहां कुछ भी हो सकता है। आए दिन कोई ना कोई चमत्कार सुनने को मिलते ही रहते हैं। अजब-गजब किस्से भी सुनने को मिलते ही रहते हैं। आप ने अनेको अनेक मन्दिर देखे होंगे. मन्दिरों में सबकी मन्नते भी पूरी होती है। उसके लिए आपको कई कठिन नियम का पालन करना पड़ता है। हम आपको एक ऐसे मन्दिर के बारे में बता रहे है जहाँ निःसंतान महिलाओं की सन्तान प्राप्त करने की इच्छा पूरी होती है।और इसके लिए कोई कठिन नियम का पालन भी नही करना पड़ता है. इस मन्दिर के फर्श पर सोने से ही महिलाओ को सन्तान की प्राप्ति होती है।
सिमसा माता मंदिर के नवराते और मेले विश्व भर मे प्रिसिद्ध है। शारदा माता सिमस में नवरात्रो वः मेलो का आयोजन हर वर्ष दो बार होता है। 1 चैत्र माह जो की (मार्च-अप्रैल) में आते है. और 2 अश्विन माह जो की (सितंबर-अक्टूबर) में आते है। यहां नवरातो में बहुत से लोग माता रानी के दर्शन करने आते है। श्रद्धालु दूर – दूर से माँ सिमसा शारदा के मंदिर में पहुचते है। और ज्यादा कर महिलाए संतान प्राप्ति के लिए और माँ के आशीर्वाद के लिए इन्ही नवरातो में आती है। माता रानी निःसंतान महिलाओ की झोली भरती है। साथ ही साथ माता सभी भग्तजनो की मनोकामना पूरी करती है। यहाँ पे लोग अलग – अलग जगह से आते है जैसे कि बिहार, शिमला, कुल्लू,चंडीगढ़, दिल्ली आदि। मंदिर में दूर से आये लोगो के रहने व खाने की निशुल्क व्यवस्था मंदिर कमेटी द्वारा की जाती है । नवरात्रों में शारदा देवी का मंदिर बहुत ही सुंदर लगता है। माँ का मंदिर फूलो से सजाया जाता है। श्रद्धालु तो हर दिन आते रहते है।लेकिन नवरात्रो में भारी सख्यां में आते है और ये परम्परा सदियों से चलती आ रही है।
विविधाताओं के देश भारत में काफी कुछ ऐसा है जो वैज्ञानिक तर्कों से हट कर आस्था के चरम का कमाल नजर आता है।अब आप इसे ईश्वर में विश्वास कहें या अंधविश्वास पर ऐसे ही विज्ञान को हैरान करते चमत्कार की कहानी सुनाता है हिमाचल में स्थित सिमसा माता का मंदिर।
दरअसल भारत के इस मंदिर में यह मान्यता है कि यहां फर्श पर सोने से महिलाएं प्रेग्नेंट हो जाती …हम कोई मजाक नहीं कर रहे, ये हकीकत है। एक ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आपको बता रहें है जंहा निसंतान लोग संतान के लिए क्या क्या नहीं करते।
संतान दात्री मंदिर की मान्यता
ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश के एक गांव के मंदिर में होता है, हिमाचल के सिमस गांव में एक सिमसा माता का मंदिर है जिसके फर्श पर सोने से निसंतान महिलाऐ प्रगनेंट हो जाती है। वैसे तो महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए न जाने कैसे-कैसे कष्टो से गुजरती हैं, लेकिन यहां तो सिर्फ फर्श पर सोने मात्र से संतान की प्राप्ति हो जाती है।
यहां दूर दूर से महिलाऐ इस मंदिर के फर्स पर सोने के लिए आती है। इस मंदिर को संतान-दात्री के नाम से जाने जाता है। नवरात्रा में यहां सलिन्दरा उत्सव मनाया जाता है जिसका अर्थ है सपने आना, निसंतान महिलाये दिन रात इस मंदिर के फर्स पर सोती है। नवरात्रों में हिमाचल के पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ से ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर की ओर रूख करती हैं जिनके संतान नहीं होती है।
सपने में आती है सिमसा माता
नवरात्रों में निसंतान महिलायें मंदिर परिसर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती हैं माता सिमसा उन्हें सपने में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है।
लोगो का मानना है की माता सिमसा सपने में महिलाओ को फल देती है और महिलाए सपने में माता से उस फल को लेती है। इसे यह संकेत मिल जाता है की माता ने संतान का का आशिर्वाद दे दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं होता इस फल से इस बात का पता चल जाता की महिलाओं लड़का होगा की लड़की।
मान्यता के अनुसार, यदि कोई महिला सपने में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। यहां तक की देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है।
सपने में मिलता है महिला को फल
जैसे कि, यदि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझ लें कि लड़का होगा। अगर किसी को सपने में भिन्डी प्राप्त होती है, तो समझें कि संतान के रूप में लड़की प्राप्त होगी। यदि किसी को निसंतान होने, धातु, लकड़ी या पत्थर की बनी कोई वस्तु प्राप्त हो तो समझा जाता है कि उसके संतान नहीं होगी। और उसके बाद भी वो महिला उस मंदिर से नहीं जाती है तो उसके शरीर में खुजली भरे लाल लाल दाग दिखने लगते है। इसलिए उसे मजबूरन वहां से जाना पड़ता है।
केवल एक उंगली से हिलने वाली शिला मंदिर के पास पत्थर हो हिलता है एक उंगली से
एक चमत्कार होता है यहां, सिमसा माता मंदिर के पास यह पत्थर बहुत प्रसिद्ध है। इस पत्थर को दोनों हाथों से हिलाना चाहो तो यह नही हिलेगा और आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊंगली से इस पत्थर को हिलाओगे तो यह हिल जायेगा।
कैसे पहुंचे सिमसा माता के मन्दिर