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हम अकेले सभी विरोधियों पर कैसे भारी पड़े, यह प्रधानमंत्री मोदी ने भरी संसद में छाती ठोकते हुए कहा। दूसरी भाषा में इसे ‘छाती पीटना’ कहा जाता है। ऐसे छाती पीटकर बोलना प्रधानमंत्री पद को शोभा नहीं देता है। हाथ में पुलिस, न्यायालय, केंद्रीय जांच एजेंसियों की फौज रखकर ‘मैं अकेला लड़ रहा हूं और सबको भारी पड़ रहा हूं’ ऐसा बोलना मजेदार है और यह मजा सिर्फ मोदी ही उठा सकते हैं। ऐसा मजा हमारे देश में पिछले सात-आठ वर्षों से शुरू है। मोदी सरकार ने जाते-जाते कुछ राज्यपालों का पत्ता फेंटा है। आखिरकार भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र से जाना पड़ा। महाराष्ट्र के राज्यपाल को नहीं हटाया होता तो जनता एक दिन राजभवन में घुस गई होती। इतना गुस्सा उनके प्रति लोगों में था। कोश्यारी की जगह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने ली और वे भी मन और खून से भाजपा के स्वयंसेवक ही हैं। इस पर बाद में बात करेंगे लेकिन नए राज्यपालों की नियुक्तियों में एक तेजस्वी और चमकदार नाम सामने आया है और वह नाम है सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर का। उनको आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। अब ये सम्माननीय नजीर कौन, तो अयोध्या के राम मंदिर का फैसला सुनानेवाली खंडपीठ के वे सदस्य थे। वहीं दूसरी तरफ ‘नोटबंदी’ मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट देनेवाली खंडपीठ में भी न्या. नजीर थे। वही न्या. नजीर अब सरकारी कृपा से आंध्रा के राजभवन पहुंच गए हैं। इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को सेवानिवृत्त होते ही राज्यसभा का सदस्य नियुक्त किया गया था। श्रीमान गोगोई भी राम मंदिर का फैसला सुनानेवाली खंडपीठ के प्रमुख थे और सरकार को अड़चन में लानेवाले कुछ मामलों का फैसला उन्होंने सुविधाजनक सुनाया था। राफेल के सौदे में कोई भ्रष्टाचार नहीं है, सभी लेन-देन स्वच्छ हैं, ऐसा मत न्या. रंजन गोगोई ने ही व्यक्त किया था। तमिलनाडु के हाई कोर्ट में एक समय भाजपा की कट्टर पदाधिकारी गौरी विक्टोरिया को अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने को लेकर भी विवाद हुआ। मोदी की सरकार आते ही इस प्रकार से कई न्यायाधीशों को निवृत्ति के बाद लाभ के सरकारी पद दिए गए। विशेषत: मुख्य न्यायाधीश पद पर हटाए गए कई लोगों को मोदी सरकार ने उपकृत किया, वह क्या फालतू में? कुर्सी पर विराजमान रहने के दौरान गुप्त ढंग से हाथ मिलाए बिना ऐसी नियुक्तियां नहीं होती हैं। कारण वर्तमान की केंद्र सरकार यह कर्ण या धर्मराज का राज्य नहीं है। सत्यवादी हरिश्चंद्र की तो बिल्कुल ही नहीं। महाराष्ट्र के सत्तासंघर्ष की सुनवाई चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है। एक असंवैधानिक सरकार के बारे में दोनों ही सर्वोच्च संस्थाओं को कितना समय लेना चाहिए? कितनी तारीख पर तारीख देनी चाहिए? राज्य में एक असंवैधानिक सरकार बैठी है और वह बेलगाम, गैर कानूनी ढंग से निर्णय ले रही है। पुन: राज्य के ‘भाजपा’ गृहमंत्री, केंद्रीय मंत्री सार्वजनिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय-चुनाव आयोग का हवाला देते हुए कह रहे हैं, ‘‘चिह्न मिंधे को मिलेगा और सर्वोच्च न्यायालय हमारे पक्ष में फैसला देगा!’’ यह आत्मविश्वास कहां से आता है? यह आत्मविश्वास न्यायमूर्तियों के निवृत्ति के बाद होनेवाली नियुक्तियों के कारण तो नहीं आता है ना? ऐसा विश्वास हो जाता है। मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री पर खास मेहरबानी दिखानेवाले मुख्य न्यायाधीश को बाद में केरल का राज्यपाल पद प्रदान किया गया था तो एक अन्य को मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन बनाकर गाड़ी-घोड़े की व्यवस्था की गई थी। इसलिए प्रधानमंत्री श्री मोदी छाती ठोककर जो कह रहे हैं कि ‘‘मैं अकेला लड़ रहा हूं और सबको भारी पड़ रहा हूं।’’ यह ठीक नहीं है। विरोधियों के शरीर पर फेंकने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों के सांप, बिच्छु, मगरमच्छ वगैरह उन्होंने पालकर रखा है। महाराष्ट्र के ढलते हुए राज्यपाल कोश्यारी से उन्होंने ‘मविआ’ सरकार के खिलाफ अनेक गैरकानूनी काम करवाकर लिया है। ‘मविआ’ सरकार के दौरान कोश्यारी ने बहुमत वाली सरकार की सिफारिश कचरे के डिब्बे में डाल दिया। विधान परिषद के १२ मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति नहीं होने दी। फिर छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर सावित्रीबाई फुले तक महाराष्ट्र के स्वाभिमान पर कीचड़ फेंकते रहे, वह अलग से। ऐसे राज्यपाल के समर्थन में महाराष्ट्र की भाजपा व उनकी मिंधे सरकार खड़ी रही, यह इतिहास में दर्ज रहेगा। महाराष्ट्र में शिवसेना से लड़ते समय मोदी अकेले नहीं थे, बल्कि राज्यपाल कोश्यारी उनकी ‘गोल्डन गैंग’ के सदस्य थे। ‘गोल्डन गैंग’ के सदस्यों को लाभ के पद व लालच देकर लड़ाई में उतारना कोई मर्दानगी नहीं है। संविधान व उनके रक्षकों की इतनी मानहानि कभी नहीं हुई थी। महाराष्ट्र के नए राज्यपाल रमेश बैस का स्वागत करते समय थोड़ा सा कोयला घिसना पड़ा कारण चंदन घिसने के दिन निकल गए हैं।