SG आजकल महिलाएं फैशन के चलते खुले केश रख कैसा अनर्थ कर रही है, शायद वह पश्चिमी सभ्यता के आगे अपनी ही भारतीय संस्कृति का उपहास कर रही हैं। या फिर फैशन के नाम पर वेद एवं पुराणों का अनादर कर, महिला अपना ही नहीं बल्कि अपने ही परिवार को संकट में डाल रही हैं। वेदों एवं पुराणों में महिला को खुले केश सोना भी निषेध बताया गया है। पहले के लोग घर में किसी कन्या के जन्म लेने पर लक्ष्मी का रूप मानते थे। घर में बहु आने पर उसे भी लक्ष्मी मानने का कारण था, क्योकि बहु एक बहु नहीं बल्कि धर्मपुत्री होती है, जिसका स्थान सगी पुत्री से भी ऊपर होता है, जिस कारण पुत्री एवं धर्मपुत्री(बहु) बहनों की तरह रहती थीं। यही कारण है कि पहले संयुक्त परिवार प्रथा प्रचरित थी। रामायण, भागवत गीता एवं महाभारत मात्र धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं बल्कि जीवनशैली, संस्कार और मार्गदर्शन का भंडार हैं।रामायण में बताया गया है, जब देवी सीता का श्रीराम से विवाह होने वाला था, उस समय उनकी माता सुनयना ने उनके बाल बांधते हुए उनसे कहा था, विवाह उपरांत सदा अपने केश बांध कर रखना।बंधे हुए लंबे बाल आभूषण सिंगार होने के साथ साथ संस्कार व मर्यादा में रहना सिखाते हैं।
ये सौभाग्य की निशानी है, एकांत में केवल अपने पति के लिए इन्हें खोलने, लेकिन पति से दूर होते ही बांधने की मान्यता है।हजारो लाखो वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियो ने शोध कर यह अनुभव किया कि सिर के काले बाल को पिरामिड नुमा बनाकर सिर के उपरी ओर या शिखा के उपर रखने से वह सूर्य से निकली किरणो को अवशोषित करके शरीर को ऊर्जा प्रदान करते है। जिससे चेहरे की आभा चमकदार , शरीर सुडौल व बलवान होता है।यही कारण है कि गुरुनानक देव व अन्य सिक्ख गुरूओ ने बाल रक्षा के असाधारण महत्त्व को समझकर धर्म का एक अंग ही बना लिया। लेकिन वे कभी भी बाल को खोलकर नही रखे ,