जंगलनुमा पेड़ों पर होती है काली मिर्च की खेती, कम लागत मे लाखों का मुनाफ़ा होता है: तरीका पढ़ें
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जंगलनुमा पेड़ों पर होती है काली मिर्च की खेती, कम लागत मे लाखों का मुनाफ़ा होता है: तरीका पढ़ें
हमारे देश में लोग लजीज खाने के बहुत ही शौकीन हैं। मसाला एक ऐसी चीज है जो यदि खाने में न डाला जायें तो खाने में स्वाद की कमी आ जाती है। भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिये और उसे बहुत ही लजीज बनाने के लिये हम कई तरह के मसालों का उपयोग करतें हैं। जैसें:- गरम मसाला, चाट मसाला, धनिया मसाला आदि। भोजन में सभी मसालों में सबसे अधिक स्वाद तब आता है जब काली मिर्च मसाला डाला जायें।काली मिर्च (Black Pepper) से खाने का स्वाद बढ जाता है। यह सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता बल्कि यह सेहत के लिये भी बहुत ही फायदेमंद होता है। काली मिर्च का सेवन करने से औषधीय फायदा होता है। काली मिर्च के सेवन से भोजन पचता है और लीवर भी स्वस्थ रहता है। यह वात और कफ को नष्ट करती है। यह दमे में भी बहुत लाभकारी सिद्ध होती है।काली मिर्च की खेती के बारें में अभी तक माना जाता रहा है कि इसकी खेती केवल दक्षिण भारत में होती है। लेकिन अब काली मिर्च की खेती छतीसगढ (Chhattisgarh) के कोंडागाँव के चिकिलकुट्टी गांव में भी होने लगी है। डॉ. राजाराम त्रिपाठी (Dr. Rajaram Tripathi) के द्वारा बनाए गए मां दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म में ऑर्गेनिक फार्मिंग द्वारा औषधीय पौधों की फसल उगाई जा रही है। डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने सोचा कि यदि काली मिर्च की खेती दक्षिण भारत (South India) में हो सकती है तो यहां क्यूं नहीं, यहां भी काली मिर्च की खेती की जा सकती है। यह सोचकर उन्होंने काली मिर्च की खेती करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने फॉर्म ‘मां दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म’ में काली मिर्च की फसल उगाना शुरु किया। उनकी मेहनत से काली मिर्च की अच्छी फसल हुई जिससे उन्हें फायदा भी हुआ।मां दन्तेश्वरि हर्बल फॉर्म के एक एकड़ की भूमि पर ऑस्ट्रेलियन टीक के 700 पौधों को लगाया गया है। इस पौधें का उपयोग इमारती लकड़ियों को बनाने के लिये किया जाता है। डॉ. त्रिपाठी के हर्बल फॉर्म में काली मिर्च का भी पौधा लगाया गया है।काली मिर्च (Black Pepper) के पौधें की पहचान।इसकी पत्तियां आयताकार होती है। पत्तियों की लंबाई 12 से 18 cm और चौड़ाई 5 से 10 cm होती है। काली मिर्च के पौधों की जड़े उथली हुईं होती है और भूमि के अन्दर 2 मीटर की गहराई तक जाती है। इसके साथ ही इसके पौधें पर सफेद रंग के फूल खिले होते हैं।