जम्मू के ज्वैलर्स ने लगाई स्वर्ण आभूषणों की सेल, पढ़ें क्या है पूरा मामला
ग्राहकों को शुद्ध सोना मिले, इस दृष्टि से सोने के आभूषणों की सही पहचान के लिए भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा सोने के प्रत्येक गहने पर हॉलमार्क यूनीक आइडिटिफिकेशन नंबर (एचयूआइडी) अनिवार्य किया गया है। यह प्रावधान पहली सितंबर 2021 से लागू हो चुका है लेकिन जम्मू के सर्राफा बाजार को सरकार का यह फरमान रास नहीं आ रहा। छोटा शहर होने के कारण यहां एचयूआइडी प्रमाण पत्र जारी करने वाले केंद्रों की भी कमी है और सोने के गहने बनाने वाले कारीगर भी काफी छोटे स्तर पर काम करते हैं। ऐसे में व्यवहारिक तौर पर इन छोटे-छोटे दुकानदारों के लिए सोने के गहनों की हालमार्किंग करवाना मुश्किल हो रहा है।केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार 31 अगस्त तक हर ज्वैलर को अपने पुराने शहरों की भी हालमार्किंग करवाना अनिवार्य था लेकिन जम्मू शहर में दस फीसद ज्वैलर्स भी इस अवधि तक पुराने गहनों की हालमार्किंग नहीं करवा पाए। शहर के चंद बड़े ज्वैलर्स को अगर छोड़ दे ताे अधिकांश स्वर्णकार व सर्राफ बिना हालमार्क की मुहर के गहनें बेचते आ रहे है। यहीं कारण है कि इन दिनों शहर के कुछ ज्वैलर्स की ओर से सोने के गहनों की सेल भी लगाई जा रही है। इनकी कोशिश है कि सरकार के इस सख्त कदम उठाने से पहले वो अपना पुराना स्टॉक क्लीयर कर लें।जम्मू-कश्मीर में सोने के गहनों की हालमार्किंग करवाने व एचयूआइडी लेने के लिए मात्र दो केंद्र है। प्रदेश में हजारों की संख्या में ज्वैलर्स व स्वर्णकार है लेकिन केवल श्रीनगर व जम्मू शहर में ही यह दो केंद्र स्थापित है। ऐसे में अन्य 18 जिलों के ज्वैलर्स व स्वर्णकार भी प्रदेश की इन दोनों राजधानियों में बने केंद्रों पर ही निर्भर है। हर नए गहने की हालमार्किंग तो आसानी से हाे रही है लेकिन ज्वैलर्स के पास पड़े पुराने स्टॉक की हालमार्किंग करवाना टेडी खीर साबित हो रहा है।
स्वर्णकारों के लिए एचयूआइडी लेना जरूरी
केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार, एचयूआइडी सोने के गहने बनाने की प्रक्रिया में प्रथम बिंदु, यानी जो आभूषण बनाएगा या कारीगरों से बनवाएगा, उसी व्यक्ति को एचयूआइडी लेना अनिवार्य है जबकि उसके बाद सप्लाई चेन में अंतिम रिटेलर तक किसी को भी एचयूआइडी लेने की जरूरत नहीं है। इससे सोने के कारोबार में पारदर्शिता आएगी और ग्राहकों को शुद्ध सोने के गहनें मिल पाएंगे। जम्मू में सोने के गहनों की बात करें तो 50 फीसद गहनें रेडीमेड आते हैं जबकि इतने ही गहनें यहां स्थानीय स्तर पर कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते हैं। जो ज्वैलर्स तो रेडीमेड गहनें मंगवाकर बेचते हैं, उन्हें कोई खास दिक्कत पेश नहीं आ रही लेकिन जो ज्वैलर्स स्थानीय कारीगरों से गहनें बनवाते हैं, उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।कम से कम मिले एक साल
सर्राफा एसोसिएशन जम्मू प्रोविंस के प्रधान रमन सुरी के अनुसार, ज्वैलर्स को अपने पुराने स्टॉक की हॉलमार्किंग करवाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन ऐसा करने के लिए ज्वैलर्स को पर्याप्त समय मिलना चाहिए। कम से कम एक साल की मोहलत दिए जाने की मांग करते हुए सुरी कहते हैं कि ज्वैलर्स की संख्या, उनके पास पड़े स्टॉक तथा सीमित हॉलमार्किंग केंद्रों को देखते हुए अतिरिक्त मोहलत दी जानी चाहिए। छोटे गहनों को इस अनिवार्यता से अलग रखने की मांग करते हुए सुरी कहते है कि सोने के जेवर साइज में इतने छोटे होते हैं कि उन पर मुहर लगा पाना संभव नहीं। इससे ज्वैलरी खराब हो जाती है, लिहाजा सरकार को इस पर सोचना चाहिए।