लावण्या आत्महत्या केस में सबूतों से छेडछाड, सरकार से असहयोग का NCPCR की रिपोर्ट में खुलासा
ईसाई धर्मान्तरण के कारण आत्महत्या में बहुत कुछ छिपा रही तमिलनाडु सरकार
तमिलनाडु की लावण्या आत्महत्या के मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की तीन सदस्यीय समिति ने तमिलनाडु सरकार के मुख्य सचिव और डीजीपी को जांच रिपोर्ट सौंप दी है। इसमें कई तरह की खामियों को उजागर किया गया है। इसके साथ ही सबूतों के साथ छेडछाड की आशंका भी जाहिर की गई है।
आयोग की रिपोर्ट में तमिलनाडु पुलिस पर धर्मान्तरण के एंगल पर शिकायत दर्ज नहीं करने का आरोप लगाया गया है। लावण्या के परिवार का कहना है कि, इसी कारण से लावण्या आत्महत्या करने के लिए मजबूर हुई। मरने से पहले के बयान में भी उसने यही कहा था। यहीं नहीं NCPCR की रिपोर्ट में विद्यालय की अमानवीयता को उजागर किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि लावण्या की मौत के बाद वो जिस विद्यालय में पढती थी, उसने तब तक उसकी मां को उसका शव नहीं दिया, जब तक कि उन्होंने लावण्या की पूरी विद्यालय फीस नहीं दे दी।लावण्या तंजावुर में सेक्रेड हार्ट हायर सेकेंडरी विद्यालय, तिरुकट्टुपाली में कक्षा 12 वीं की छात्रा थी। उसे विद्यालय के अधिकारियों ने धर्मान्तरण कर ईसाई बनने के लिए मजबूर किया, लेकिन लावण्या ने ईसाई बनने के दबाव के आगे न झुकते हुए कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली।
NCPCR ने रिपोर्ट में कहा है कि इस घटना को लेकर जांच करने के लिए उसे 3545 शिकायतें मिली थी, जिसके बाद इस पर संज्ञान लिया गया।
NCPCR ने कहा, “तंजावुर में नाबालिग लडकी की मौत के मामले में राज्य सरकार के ढीले रवैये को देखते हुए NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो, शिक्षा सलाहकार मधुलिका शर्मा और कानूनी सलाहकर कात्यायनी आनंद समेत तीन अधिकारियों की टीम तंजावुर के दौरे पर गई थी।”
रिपोर्ट में आयोग ने तंजावुर के एसपी, जांच अधिकारी, मुख्य शिक्षा अधिकारी, नाबालिग लडकी का इलाज करने वाले डॉक्टरों और उसके शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों, दादा-दादी, नाबालिग की मां और परिवार से बातचीत की गई। मामले की जांच के दौरान इस मामले में विद्यालय प्रशासन की ओर से कई तरह की लापरवाहियों का पता चला।
एम लावण्या मामले में लापरवाह रहा विद्यालय प्रशासन और पुलिस
जांच के दौरान सबसे पहले NCPCR ने इस बात का जिक्र किया है कि, जब लावण्या विद्यालय में बीमार हुई थी तो विद्यालय अधिकारियों ने उसकी देखभाल में लापरवाही की। इसके अलावा जांच टीम तंजावुर में सेक्रेड हार्ट हायर सेकेंडरी विद्यालय, माइकलपेट पहुँची तो पता चला कि वहाँ पर बच्चियों के रुकने के लिए अलग से कमरे तक नहीं थे।
सबूतों से छेडछाड किए जाने की आशंका व्यक्त करते हुए रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लावण्या जिस हॉल में रहती थी, उसे साफ कर दिया गया था और फर्नीचर, किताबें, कपड़े और बच्चों के सामान जैसे जरूरी सामानों को वहां से हटा दिया गया था। यहां तक कि इस मामले की जांच कर रही स्थानिक पुलिस ने घटना स्थल को सील तक नहीं किया था। NCPCR का मानना है कि कानूनी प्रक्रिया में कमी के कारण सबूतों से छेडछाड की आशंकाएं प्रबल हैं।
पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए NCPCR ने बताया है कि जब टीम ने लावण्या मामले के जांच अधिकारी और एसपी से बातचीत की तो बोर्डिंग (वो हॉल जहां पर बच्चों को रखा जाता था) के वार्डन को लेकर जानकारी मिली। वो इस मामले में मुख्य आरोपित है। लेकिन हैरानी है कि उसे वारदात वाले स्थल पर सीन को रीक्रिएट करने के लिए नहीं ले जाया गया। मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने NCPCR को बताया कि उन्होंने वार्डन को रिमांड पर लिया ही नहीं। यहीं नहीं पुलिस उस व्यक्ति का भी पता नहीं लगा पाई, जिससे लावण्या ने जहर खरीदा था। इसके अलावा इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर और एसपी के बयानों में काफी विसंगतियाँ थीं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है, “एक नाबालिग लडकी की मौत की जांच में मामले जिस तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए था, जांच अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदम उसके अनुसार नहीं थे। इससे निष्पक्ष जांच को लेकर संदेह पैदा होता है।”
विद्यालय अधिकारियों ने भी दिखाई अमानवीयता
एम लावण्या आत्महत्या मामले से उसके विद्यालय के अधिकारियों और राज्य पुलिस की उदासीनता पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय आयोग ने बताया कि लावण्या को इलाज के लिए ले जाने से पहलेविद्यालय के अधिकारियों ने उसकी मां से पहले पूरी फीस भरवा ली, उसके बाद ही उसे ले जाने दिया। इस मामले में विद्यालय के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया।
NCPCR ने जांच के दौरान पाया कि, इस मुद्दे की जांच कर रहे अधिकारी ने कहीं न कहीं CCI में रहने के लावण्या से जुड़े तथ्यों को छुपाने की कोशिश की थी। यहीं नहीं अधिकारी ने जांच टीम की सभी दलीलों को नजरअंदाज कर दिया। इसके अलावा ईसाई धर्मान्तरण के लिए नाबालिग को मजबूर करने के पीड़िता के परिवार के आरोप को नजरअंदाज कर दिया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है, “NCPCR ने जांच पाया है कि जांच अधिकारी इस मुद्दे को पूरी तरह से घुमाकर इस बात पर केंद्रित कर रहे थे कि कैसे लावण्या की सौतेली मां ने उसे घर में काम करने के लिए मजबूर किया था। हालांकि, अपने दौरे के दौरान टीम को विद्यालय और पुलिस ने बताया कि वार्डन नाबालिग लडकी को सीसीआई के आधिकारिक काम जैसे बहीखाता, अकाउंटिंग, स्टोर प्रबंधन आदि और दूसरे काम जैसे परिसर की सफाई, शौचालय की सफाई और दरवाजा खोलने जैसे काम कराए।”
इसमें ये भी कहा गया है कि अधिकारियों ने अहम जानकारियों को छिपाने की कोशिश की और लावण्या के परिवार द्वारा ईसाई धर्मान्तरण के आरोपों को भी नजरअंदाज किया गया।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 के नियम 2016 का उल्लंघन
NCPCR की रिपोर्ट में उस कानूनी बाध्यता का भी जिक्र किया गया है, जिसका विद्यालय के अधिकारी पालन नहीं कर रहे थे। इसमें बताया गया है कि विद्यालय जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 के तहत बिना किसी वैलिड रजिस्ट्रेशन के बगैर विद्यालय बच्चों को रहने के लिए आवास दे रहा था। जबकि, इसके लिए रजिस्ट्रेशन आवश्यक था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नाबालिग लड़की के पास माता-पिता और भरा पूरा परिवार होने के बावजूद उसे गैरकानूनी तरीके से CCI कैम्पस में रखा गया था। यहीं नहीं उसे अधिकारियों द्वारा बाल कल्याण समिति (CWC) के सामने भी पेश नहीं किया गया, जबकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 की धारा 37 के अनुसार जरूरी है।
इसमें कहा गया है कि किसी भी बच्चे को रखने से पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर, देखभाल सुविधाओं जैसे कई प्रक्रियाओं का पालन CCI को करना चाहिए था, लेकिन सीसीआई निर्धारित मानदंडों से कम रहा है।
जांच के दौरान NCPCR कमेटी ने पाया कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 के मुताबिक, ये कानूनी रूप से ये अनिवार्य है कि किसी भी बच्चे से जुड़े अपराध के मामले में एक विशेष जुवेनाइल अधिकारी या पुलिस यूनिट होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।NCPR द्वारा की गई सिफारिशें
केंद्रीय आयोग की रिपोर्ट में मुख्य रूप से राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक (DGP) से सिफारिशें की गई हैं।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 के तहत बिना रजिस्ट्रेशन के विद्यालयी बच्चों को आवास देने के बावजूद इस मामले में कार्रवाई करने में विफल रहने वाले जिला अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश।
मृतक लावण्या के माता-पिता और भाई को जरूरी सहायता, मुआवजा और सहायता देने की सिफारिश।
तमिलनाडु हॉस्टल एंड होम्स फॉर विमेन एंड चिल्ड्रन रेगुलेशन एक्ट-2014 और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 के तहत ऐसे कितने संस्थान काम कर रहे हैं, इसकी जानकारी के लिए NCPCR को इसकी एक लिस्ट देने की सिफारिश।
उक्त CCI में रहने वाले सभी बच्चों को उचित प्रक्रिया के तहत ट्रांसफर करने की सिफारिश
जिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
राज्य के डीजीपी से NCPCR ने मांग की है कि वो जाँच की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने और निष्पक्ष जांच नहीं करने के मामले में जिम्मेदार जिला पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करें।