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केंद्र सरकार का नया फैसला सुस्त अफसरों की खैर नहीं

 

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भ्रष्ट और सुस्त अफसरों को जबरन रिटायर करेगी केंद्र सरकार, तैयार हो रही लंबी सूची

सार

केंद्रीय संस्थानों से ऐसे अधिकारियों की रिपोर्ट मांगी गई थी। कोरोना संक्रमण के दौरान इन अधिकारियों की फाइलें आगे नहीं बढ़ सकीं। वजह उस समय इन मामलों के लिए रिप्रेजेंटेशन कमेटी गठित नहीं हो पाई थी। अब केंद्र ने कमेटी का नए सिरे से गठन कर दिया है…

विस्तार

केंद्र सरकार अपने मंत्रालयों और विभागों में लंबे समय से बैठे भ्रष्ट और सुस्त अफसरों की सेवा पर कैंची चलाने के लिए लंबी सूची तैयार कर रही है। पचास साल की आयु का पड़ाव पार कर चुके इन अफसरों को एफ.आर 56 (जे)/रूल्स-48 ऑफ सीसीएस (पेंशन) रूल्स-1972 नियम के तहत जबरन रिटायरमेंट दी जाएगी।इनमें ए, बी और सी श्रेणी के अधिकारी शामिल हैं। सभी केंद्रीय संस्थानों से इन अधिकारियों की रिपोर्ट मांगी गई थी। कोरोना संक्रमण के दौरान इन अधिकारियों की फाइलें आगे नहीं बढ़ सकीं। वजह उस समय इन मामलों के लिए रिप्रेजेंटेशन कमेटी गठित नहीं हो पाई थी। अब केंद्र सरकार ने कमेटी का नए सिरे से गठन कर दिया है। इसमें दो आईएएस अधिकारी और एक कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी का सदस्य शामिल है।

 

बता दें कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) 1972 के नियम 56(J) के अंतर्गत 30 साल तक सेवा पूरी कर चुके या 50 साल की उम्र पर पहुंचे अफसरों की सेवा समाप्त की जा सकती है। ऐसे अफसरों को जबरन रिटायरमेंट दे दी जाती है। संबंधित विभाग से इन अफसरों की जो रिपोर्ट तलब की जाती है, उसमें भ्रष्टाचार, अक्षमता व अनियमितता के आरोप देखे जाते हैं।

 

यदि आरोप सही साबित होते हैं तो अफसरों को जबरन रिटायरमेंट दे दी जाती है। ऐसे अधिकारियों को नोटिस एवं तीन महीने के वेतन-भत्ते देकर घर भेजा जा सकता है। केंद्र सरकार ने अब जो नई रिप्रेजेंटेशन कमेटी गठित की है, उसमें उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव लीना नंदन और कैबिनेट सचिवालय में जेएस आशुतोष जिंदल शामिल हैं। ये दोनों अधिकारी सीनियर आईएएस डॉ. प्रीति सूदन और रचना शाह की जगह पर आए हैं।

 

अब जल्द ही भ्रष्ट, अक्षम और सुस्त अधिकारियों की सूची को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इन अफसरों की पिछले कई वर्षों की रिपोर्ट के आधार पर इन्हें जबरन रिटायरमेंट देने का फैसला लिया जा सकता है। दो साल से तो ऐसे अधिकारियों के वर्क रिपोर्ट हर तीसरे महीने मंगाई जा रही है।

 

केंद्र सरकार के अलावा कई राज्य सरकारें भी अपने अधिकार क्षेत्र वाले भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब छह सौ अफसरों को जबरन रिटायरमेंट देने का फैसला किया था।

 

केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अपने 27 सीनियर अधिकारियों को जबरन रिटायरमेंट पर भेज दिया था। दिल्ली, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र, असम और त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र की तर्ज पर अपने प्रदेशों में भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी। केंद्र सरकार अपने इस कदम से मौजूदा व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है।

 

बहुत सी ऐसी योजनाएं हैं, जो अफसरों की लापरवाही के चलते समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं। यही वजह है कि अब केंद्र सरकार सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) 1972 के नियम 56(J) के तहत अक्षम व भ्रष्ट अधिकारियों को समय से पहले घर भेज रही है।

 

विभागों में ऐसे अधिकारियों की संदिग्ध गतिविधियों और कामकाज पर नजर रखने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयुक्त एवं अन्य निगरानी समितियों की भरपूर मदद ली जा रही है। केंद्रीय सतर्कता आयोग में ऐसे मामलों के लिए अलग से अधिकारियों की टीम गठित की गई है। दिल्ली में एलजी अनिल बैजल पहले ही भ्रष्ट अफसरों को जबरन रिटायरमेंट देने की कार्रवाई शुरू कर चुके हैं