तुम्हारा रूप
"प्रेम का दर्पन तुम्हारा रूप है। बूँद का तर्पन तुम्हारा रूप है। सुमुखि! झंकृत वेदना के तार है, भाव प्रत्यर्पण तुम्हारा रूप है। निशा का घूँघट उतारा भोर में, नेह भर लायी नयन की कोर मे। उषा के पट जब खुले मनुहार मे, किरन का नर्तन तुम्हारा रूप है।...