गुनगुनाती रही
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नयन झरते रहे , रुत
सताती रही ,
याद उनकी खयालों में
आती रही !
दिल मचलता रहा बात
होती रही ,
ये शमा रात भर
झिलमिलाती रही ।
खुद उदासी से अपनी
तड़पती रही ,
दर्द अपना जहाँ को
सुनाती रही !
ये सितम आपका
और खामोशियाँ ,
मैं समंदर में दिल के
बसाती रही।
रोज साँसों में खुद की
बसाकर सदा ,
जिंदगी को गले से
लगाती रही !
इस तरह से सता के
कहॉं चल दिये ?
अंजुमन में तुझे मैं
बुलाती रही !
वो यहीं पास हैं , आ
रहे हैं सनम ,
बोलकर झूठ खुद को
भुलाती रही !
रूह बन हसरतें सब
बताती मुझे ,
बन ग़ज़ल और खुद
गुनगुनाती रही !
पास आते अगर आप
खामोश भी ,
तो नजर से नजर फिर
मिलाती रही !
पास आजा सनम दूर
जाओ नहीं ,
बोलकर दूरियाँ मैं
मिटाती रही !
प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी