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भारत चीन सीमा विवाद – देश के सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व पर रखे भरोसा ।

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दुनियां की सबसे बड़ी आबादी के साथ चीन जहां पहले स्थान पर है वही भारत दुनियां की दूसरी बड़ी आबादी वाला देश है । पिछले 90 वर्षों में जहां चीन ने अपनी सीमा का विस्तार कर कई पड़ोसियों को चीन में मिलाया है वही भारत इसी अवधि में अपने देश के कई टुकड़े होते हुए भी देखा है । वजह अनेक है पर सच्चाई यही है कि भारतीय सीमा पहले की अपेक्षा कम हुई है । आज भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और चीन की गतिविधियों से देश को अनेको कठोर निर्णय लेने पड़े है । बॉर्डर की सबसे लंबी दूरी 4056 किलोमीटर भारत चीन के साथ साझा करता है जिसे हम लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के नाम से जानते है । भारत चीन बॉर्डर के विवाद का इतिहास काफी पुराना है और यह समस्या इस लिए भी बड़ी है कि दोनों देश के बीच सिमा का निर्धारण नही हुआ है । 1962 कि लड़ाई और उसके परिणाम किसी से छिपे नही है । शायद यही वजह है कि चीन के हौसले बुलंद है और समय – समय पर भारतीय सीमा में घुसकर भारत की न केवल सहनशक्ति का आकलन करता है बल्कि धीरे – धीरे सही, जमीन हथियाने की कोशिश करता है । जिसका भारत ने हमेशा से कड़ा विरोध किया है ।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने के पश्चात से देश के पड़ोसी देशों से सीमा विवाद को खत्म करने की पूरी कोशिश की गई है बांग्लादेश इसका जीवंत उदाहरण है । साथ ही सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सीमा के पास सड़क, हवाई पट्टियों और जरूरी संसाधनों का विकास हो । भारत के सीमा पर कार्यो की वजह से पड़ोसी देशों में असुरक्षा उत्पन्न हो गयी है । क्योंकि इन कार्यो के पश्चात भारत उनपर पैनी नजर रख सकता है बल्कि जरूरत पड़ने पर सैनिको और हथियारों को समय के अंदर पहुँचा सकता है ।

 

चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ पर भारत और चीन के रिश्तों के बारे में यह विवरण मिलता है कि सीधे तौर पर चीन गलवान घाटी में उतपन्न स्थिति के लिए भारत को जिम्मेदार बता रहा है जबकि सच्चाई यह है कि भारतीय सीमा के अंदर घुस कर बर्बरतापूर्ण रूप से सैनिको के जीवन को नुकसान चीनी सैनिकों ने पहुँचाया है । प्रतिउत्तर में भारतीय सेना द्वारा मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या के बारे में चीन बोलने को तैयार नही है । अब चीन का कहना है कि लद्दाख की गलवान घाटी उसकी है । जबकि भारत चीन का युद्ध 1962 मे इसी घाटी पर लड़ा गया था जहां यह निर्धारित हो गया था कि यह भारत की है । दरअसल चीन भारत के जम्मू कश्मीर के विषय मे लिए गए निर्णय से आहत है । भारत ने आर्टिकल 370 को खत्म करके पाकिस्तान की चालबाजी पर न केवल नकेल कस दी बल्कि देश के गृहमंत्री ने पाकिस्तान अधिगृहित कश्मीर (POK) और अक्साई चीन को भारत का हिस्सा बता करके, किसी भी परिस्थिति में वापस लाने की बात कह करके, चीन की नींद उड़ा रखी है ।

 

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत और चीन दोनो दुनियां में महत्वपूर्ण देश है और यदि आपसी युद्ध शुरू होता है तो इसका खामियाजा न केवल इन दोनों देशों को बल्कि दुनियां भर को उठाना पड़ेगा । जहां भारत सच्चाई के लिए चीन से लड़ रहा है वही चीन भारत पर आरोप लगाकर के दुनियां को यह दिखाना चाह रहा कि यदि युद्ध होता है तो भारत इसका जिम्मेदार है । एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के द्वारा भारत को $750 मिलियन का लोन देने चीन की कूटनीति का ही हिस्सा है। अमेरिका ने इस विषय मे अप्रत्यक्ष तौर पर भारत के मदद की पेशकश की है ।

 

भारत के अलावा चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद में हमेशा ही चर्चा में रहा है । चीन का सीमा विवाद नार्थ कोरिया, रूस, मंगोलिया, कजाखस्तान, कयरञ्जस्तान, ताजीकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस और वियतनाम के साथ है । वह किसी भी परिस्थिति में छोटे देशो को अपने अधीन करने और बड़े देशो की जमीन पर कब्जा करने में लगा हुआ है । चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने 17 जून के प्रकाशन में लिखा है कि भारत के साथ यदि युद्ध होता है तो भारत को बड़ी कीमत चुकानी होगी जो अभी कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था की तंगी से लड़ रहा है और पाकिस्तान नेपाल भी चीन से युद्ध के समय युद्ध प्रारंभ कर देंगे । यानी कि वर्तमान परिस्थिति में चीन, पाकिस्तान, नेपाल जैसे देश भारत के खिलाफ है जबकि देश मजबूत इच्छा शक्ति के साथ देश की आंतरिक और वाह्य परिस्थितयों से लड़ रहा है जिसके पीछे सशक्त नेतृत्व और मजबूत सरकार का होना है ।

 

विपक्ष सभी बातों में सरकार का विरोध करता है और इस वर्तमान परिस्थितियों में भी विरोध कर रहा है पर वास्तविक सच्चाई यह है कि भारत चीन के वर्तमान विवाद के पीछे एक पार्टी की सरकार रही है जिसने सही समय पर उचित निर्णय न लेकर अंतहीन विवाद को जन्म दिया है जिससे सारा देश लड़ रहा है । और यह कश्मीर के विवाद में भी लागू होता है ।

 

आजकी वर्तमान आर्थिक संरचना में कोई भी देश दो तरह का युद्ध लड़ता है एक सैन्य/हथियार युद्ध दूसरा अर्थव्यस्था और निवेश युद्ध । इस काम मे भी चीन ने चालाकी से कार्य किया है तभी तो आज से कुछ दिनों पहले ही भारत सरकार ने चीन के भारत मे किसी भी निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था और सरकारी सहमति के पश्चात ही निवेश किया जा सकता है इसकी घोषणा की । यह बात भी चीन को बेहद खटक रही थी । आपको बता दे कि भारत मे सर्वाधिक बिकने वाला मोबाइल चीनी कंपनियों का ही है जिसे हम ओप्पो, वीवो, श्योमि/मी, के नाम से जानते है ।फोसुन, मीडिया, सैक,हायर, टिकटोक चीनी कंपनिया देश मे कार्य कर रही है । पर वास्तविक निवेश चीन का भारत की कम्पनियो मे है ये कंपनियां है पेटीएम, हाइक मैसेंजर, स्नैपडील, ओला, आइबिबो, मेक माई ट्रिप, फ्लिपकार्ट, जोमाटो, स्विग्गी, टेनसेंट, ओयो, बैजू, देलहीवेरी, ड्रीम11, पालिसी बाजार, क्विकर, रिविगो, उड़ान, टीसीएल और माई डर्मेसी इत्यादि। चीन देश के स्टार्टअप में भी तेजी से निवेश कर रहा है । कुछ भारतीय कंपनियां भी चीन में कार्य कर रही है ये है अडानी, डॉ रेड्डी, जिंदल स्टील एंड पॉवर, बी.ई.एम.एल, गोदरेज & बॉयस, बीएचईएल, औरोबिंदो फार्म पर चीन की तुलना में यह काफी कम है । अमेरिका के बाद दूसरा सबसे देश चीन है जो दुनियां भर में विदेशी निवेश (FDI) से सबसे अधिक आय अर्जित करता है । उत्पादन क्षेत्र में भी चीन अग्रगण्य है ।

 

भारत के यूएन सिक्योरिटी कॉउन्सिल में बिना किसी विरोध के चुने जाने ने चीन की परेशानियों को और बढ़ाएगा । चीन सीमा विवाद का अंत अभी होता नजर नही आ रहा है पर यह जरूर है कि वैश्विक दबाव, चीनई कंपनियों का आंतरिक दबाव, भारत की कूटनीति, विदेश नीति की वजह से वर्तमान उतपन्न परिस्थिति को अवश्य समाप्त किया जाएगा और चीन को न चाहते हुए भी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ेगा ।

 

भारत चीन सीमा पर दोनों देशों ने भारी संख्या में सैनिको की तैनाती कर दी है दोनो देशो के बीच आपस मे तनाव अत्यंत गहरा है युद्ध जैसे आसार आमने सामने है । ऐसे में दोनों देशों के विदेश सचिव की आपसी बात चीत भी अभी तक किसी निर्णय पर नही पहुँची है । सयुंक्त राष्ट्र अमेरिका ने एक बयान में कहा है कि दोनों देश के सीमा विवाद पर उनकी पैनी नजर है । भारत ने भी अपने एक बयान में कहा है कि हम शांति प्रिय देश है पर यदि कोई हमे उकसाएगा तो हम उसका बदला लेने में सक्षम है । दोनों देशों की तनातनी का नकारात्मक प्रभाव दोनो देश की अर्थव्यवस्था और शेयर मार्केट पर पड़ना शुरू हो गया है । किसी भी इस तरह की समस्या का समाधान युद्ध नही हो सकता पर जब विरोधी आपको कम आंक रहा हो तो अपने अस्तिव के लिए कई बार युद्ध करना पड़ता है । आगामी कुछ दिन युद्ध की स्थिति के लिए निर्णायक होंगे पर चीन समेत दुनियां ने इस बात को समझ लिया है कि भारत का अभिन्न हिस्सा अक्साई चीन, पाकिस्तान अधिगृहित कश्मीर और लद्धाख के विवादित हिस्से है जिसके लिए सरकार पूर्ण रूप से तटस्थ है ।

 

किसी भी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय समस्या का समाधान जिस तरह से मोदी सरकार ने पिछले वर्षों में सत्ता में आने के पश्चात किया है वह काबिले तारीफ है । दुनियाभर के देशों ने जिस तरह से भारत का साथ दिया है वह वास्तव में मोदी सरकार की कुशल कूटनीति / विदेश नीति का ही कमाल है। पाकिस्तान को आर्टिकल 370 के मुद्दे पर जिस तरह से अलग थलग कर दिया था उसकी कल्पना नही की जा सकती रही । आज पाकिस्तान और वहां के निवासी मनाने लगे है कि P.O.K. और अक्साई चिन भारत मे कभी भी मिल सकते है यह देश के अब तक के सबसे श्रेष्ठ कुशल नेतृत्व की वजह से संभव हो पाया है । आतंकवाद के प्रति जीरो टोलरेंस नीति के तहत देश प्रतिबद्ध है । ये ऐसे कार्य है जिसे जमीनी रूप से मोदी सरकार ने करके दिखाया है । चीन सीमा विवाद के प्रति जिस तेजी से कार्यरत है आने वाले कुछ दिनों में चीन को मुह की खानी पड़ेगी और पुनः वापस अपनी सेना को बुलाना पड़ेगा । आज जरूरत है देश के नेतृत्व पर विश्वास करने की ।

 

डॉ अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)

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