बदलते राजनीतिक माहौल में तेजी से औद्योगिक विकास के दम पर ही भाजपा की ‘डबल इंजन’ की सरकार लगा सकती है हैट्रिक
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इन दिनों ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का नगाड़ा बज रहा है और इसमें 2024 के लोकसभा चुनाव की आवाज भी सुनाई पड़ रही है तो यह कोई अचरज की बात नहीं है। सरकार के फैसले इस बीच भले ही अर्थव्यवस्था की मजबूती को केंद्र में रखकर लेते हुए दिख रहे हैं, परंतु इसे चुनावी धरातल की ओर मजबूती के रूप में भी देखा जा सकता है। बीते सप्ताह ही नई औद्योगिक नीति जारी हुई है और इसमें निवेशकों के लिए रेड कारपेट का बिछाया जाना भी चुनावी चाशनी का ही हिस्सा माना जा सकता है। यह नारा बहुत पहले से ही चल रहा है कि यूपी को वन ट्रिलियन इकोनामी की ओर ले जाना है और यही नारा अगले चुनाव में यूपी में गूंजता दिखाई दे सकता है।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के निवेश का आंकड़ा भी इसे और धार देगा और यही वजह है कि योगी सरकार अपनी पूरी ताकत से इसकी तैयारियों में जुटी है। यूपी मजबूत तो दिल्ली का तख्त भी मजबूत, क्योंकि वहां के लिए रास्ता यहीं से जाएगा। देश की राजनीति में 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की अहमियत किसी से छिपी नहीं है। आठ वर्ष पहले केंद्र में मोदी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा ने राज्य की बिगड़ी कानून व्यवस्था, पिछड़ेपन-बेरोजगारी को खासतौर से बड़ा मुद्दा बनाया और मार्च 2017 में राज्य की सत्ता की बागडोर हासिल करने में कामयाब रही।
बुंदेलखंड में उद्योगों की फसल लहलहाए
योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभालते ही एक साथ कई मोर्चे पर काम किए। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर राज्य की छवि बदलने के साथ ही राज्य में औद्योगिक विकास को गति देने के लिए तमाम खामियों वाली पुरानी नीतियों को बदलने में देर नहीं की। राज्य में औद्योगिक विकास की क्षेत्रीय असमानता को दूर करने पर खासतौर से फोकस किया गया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पिछड़ेपन का शिकार रहे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में उद्योगों की फसल लहलहाए इसके लिए इन क्षेत्रों में इकाई लगाने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए कहीं ज्यादा अनुदान देने की व्यवस्था की गई। सूबे के दूर-दराज वाले शहरों को लखनऊ और दिल्ली तक से जोड़ने वाले पूर्वांचल व बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे बनाए गए।