इलाहाबाद हाई कोर्ट का सरकार को निर्देश- शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना घोषित हो दुष्कर्म
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि दुराचार से महिला के जीवन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उसे गंभीर शारीरिक व मानसिक पीड़ा से गुजरना होता है। इसलिए शादी करने का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना कानून में दुष्कर्म का अपराध घोषित किया जाना चाहिए।प्रयागराज [विधि संवाददाता]। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए राज्य सरकार को स्पष्ट और मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया है। साथ ही सख्त कानून बनाने की संस्तुति की है। कहा है कि पुरुष की इस वर्चस्ववादी मानसिकता से सख्ती से निपटना चाहिए कि ‘महिलाएं भोग विलास के लिए है’, ताकि महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा न हो और लैंगिक असमानता को दूर करने के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके । कानपुर के हर्षवर्धन यादव की आपराधिक अपील खारिज करते हुए न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि मौजूदा मामले में पीड़िता और अभियुक्त एक दूसरे को पहले से जानते थे। अभियुक्त ने शादी का वादा किया, जब पीडि़ता ट्रेन से कानपुर जा रही थी तो आरोपित ने उससे मिलने की इच्छा जाहिर की और कोर्ट मैरिज के दस्तावेज तैयार करने की बात कह कर उसे होटल में बुलाया। पीड़िता होटल पहुंची, तो आरोपित ने यौन संबंध बनाए इसके तुरंत बाद शादी करने से न सिर्फ इन्कार कर दिया बल्कि गालियां दी और जातिसूचक अपशब्द कहे। अर्जी में कहीं भी विवाह के लिए तैयार होने की बात नहीं की गई है। इससे पता चलता है उसने पीड़िता से यौन संबंध बनाने के लिए भावनात्मक दबाव डाला। जैसे ही उद्देश्य में सफल हुआ, तुरंत पीड़िता से शादी करने से इन्कार कर दिया।आरोपित पक्ष की इस दलील को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया कि अभियुक्त और पीड़िता एक दूसरे को लंबे समय से जानते थे और आपसी सहमति से संबंध स्थापित हुआ था। बचाव पक्ष ने कहा कि याची को ब्लैकमेल करने के इरादे से पीड़िता ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है। मामले में पीड़िता ने कानपुर के कलेक्टरगंज थाने में दुष्कर्म और एसटी एससी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराई है।विधायिका स्पष्ट कानूनी ढांचा बनाए : कोर्ट के अनुसार आज कल यह चलन बन गया है। ऐसे मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि अपराधी समझता है कि वह कानून का फायदा उठाकर दंड से बच जाएगा। इसलिए विधायिका के लिए आवश्यक है कि वह स्पष्ट और विशेष कानूनी ढांचा तैयार करे। जब तक ऐसा कानून नहीं बन जाता, अदालतों को सामाजिक वास्तविकता और मानवीय जीवन की आवश्यकता को देखते हुए प्रताड़ित महिलाओं को संरक्षण देना जारी रखना चाहिए। जहां परिस्थितियां ऐसा दर्शा रही हैं कि अभियुक्त कभी शादी का वादा पूरा नहीं करना चाहता था अथवा वह इस प्रकार का वादा पूरा करने में सक्षम नहीं था। या तो वह पहले से शादीशुदा था अथवा फिर उसने अपनी जाति, धर्म, नाम आदि छिपा कर संबंध बनाए थे। ऐसे मामलों में दंड की व्यवस्था की जाए।मूकदर्शक नहीं रह सकतीं अदालतें : अदालत की टिप्पणी थी कि झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने की प्रवृत्ति को गलत तथ्यों के आधार पर ली गई सहमति माना जाना चाहिए। इसे दुष्कर्म की श्रेणी का अपराध माना जाए। ऐसे मामलों में अदालतें मूकदर्शक नहीं बन सकती हैं। उन लोगों को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है, जो मासूम लड़कियों का उत्पीड़न कर उनके साथ यौन संबंध बनाते हैं।