Monday, November 25, 2024

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सीएम धामी के राज में उत्तराखंड में लगी एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन

उत्तराखंड में लगी एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन, अंतरिक्ष तक है पहुंच..जानिए इसकी खास बातें

 

इस टेलीस्कोेप के जरिए अंतरिक्ष में सुपरनोवा, गुरुत्वीय लेंस और एस्टेेरॉयड आदि की जानकारी लेने में मदद मिलेगी। इंडियन लिक्विड मिरर टेलीस्कोप (ILMT) आसमान का सर्वे करने में मदद करेगा।नैनीताल: उत्तराखंड ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक शानदार उपलब्धि हासिल की है।

 

first International Liquid Mirror Telescope in Uttarakhand

यहां नैनीताल में देश और दुनिया का पहला इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलिस्कोप लगाया गया है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान की पहल पर देवस्थल में दुनिया का पहला आईएलएमटी यानि इंटनेशनल लिक्विड मिरर टेलिस्कोप स्थापित हुआ है। इस दूरबीन को 50 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है, यह पांच देशों की साझा परियोजना है। दूरबीन ने पहले चरण में हजारों प्रकाश वर्ष दूर की आकाशगंगा और तारों की तस्वीरें उतार कर कीर्तिमान स्थापित किया है। गुरुवार को एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दूरबीन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि साल 2017 में दूरबीन का निर्माण शुरू हुआ था, जो कि अब पूरा हो सका है। इसके निर्माण में दुनिया के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की मदद ली गई। पहले चरण की टेस्टिंग में दूरबीन ने 95 हजार प्रकाश वर्ष दूर एनजीसी 4274 आकाशगंगा की स्पष्ट तस्वीर ली है। साथ ही अपनी आकाशगंगा के तारों को भी कैमरे में कैद किया है।इस दूरबीन की मदद से अंतरिक्ष में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी। यूएफओ, आकाश में उड़ने वाली वस्तुओं के अलावा उल्कावृष्टि जैसी घटनाओं को कैमरे में कैद किया जा सकेगा। नए ग्रहों-नक्षत्रों के बारे में जानकारी जुटाई जा सकेगी। लिक्विड मिरर दूरबीन में तरल पदार्थ के जरिए ब्रह्मांड के तारों समेत ग्रह-नक्षत्रों की तस्वीर ली जा सकती है। यह तरल पदार्थ मरकरी होता है। यहां आपको देवस्थल नाम की जगह के बारे में भी बताते हैं, जहां दूरबीन को स्थापित किया गया है। देवस्थल धाना-चूली के पास और एरीज नैनीताल से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक पर्वत शिखर है। खगोलीय घटनाओं पर नजर रखने और अध्ययन के लिए 1980-2001 के दौरान गहन निरीक्षण के बाद इसका चयन किया गया था। प्रो. दीपांकर बनर्जी ने कहा कि भारत समेत बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज्बेकिस्तान इस परियोजना के साझेदार हैं। एस्ट्रॉनॉमिक ऑब्जर्वेशन के लिए दुनिया में पहली बार यह टेलिस्कोप इस्तेमाल हो रहा है