Tuesday, December 3, 2024

राजनीति

जब 2008 में अतीक अहमद ने UPA सरकार को गिरने से बचाने में की थी मदद

ARTI

माफिया अतीक अहमद के पकडे जाने से लेकर मारे जाने तक विपक्ष का बिलबिलाना स्वाभाविक है। उसका कारण है, जो माफिया इनका संकटमोचन बनता रहा हो, कर्जा तो चुकाना है। दूसरे, अतीक की मौत पर ‘लोकतंत्र खतरे में’ चिल्लाकर जनता को गुमराह करने वाले बताएं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उन्हीं के निवास पर हत्या होने और भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की इतनी सख्त सुरक्षा होने के बावजूद हत्या होने पर तब लोकतंत्र खतरे में क्यों नहीं था?अतीक अशरफ की पुलिस कस्टडी में यूं हत्या ना केवल योगी सरकार को बदनाम करने की साजिश है बल्कि “हिंदू आतंकवाद” की पटकथा लिखने का षडयंत्र भी हो सकती है! चर्चा है कि लगता है जिन्होंने अतीक को बनाया उन्होंने ही उसे खत्म करा दिया?

अपने लड़के के मरने के बाद अतीक टूटने लगा था, उसे अपने परिवार की चिंता सताने लगी थी; अब वो कई राज खोलने लगा था; हो सकता है कि उसने सरकार से सरकारी गवाह बनकर अपनी जान के बदले कुछ बड़े राज खोलने की डील की हो!
वर्ना अचानक पाकिस्तान से ड्रोन के सहारे भारतीय बॉर्डर में हथियार गिराने का राज क्यों खोलता वो? 
इस विषय के इर्द गिर्द तो उससे कोई पूछताछ भी नहीं कर रहा था?
विचारणीय है कि अगर पंजाब बॉर्डर पर पाकिस्तान हथियार फेंकता था तो आज तक पंजाब पुलिस को ये बात क्यों नहीं पता चली?
ISI, अंडरवर्ल्ड, पाकिस्तान के इस नेटवर्क में भारत बैठे कौन- कौन लोग जुड़े थे? 
पंजाब, कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश तक कई अपराधी और सफेद पोश लोग इस नेटवर्क में जुड़े हो सकते हैं?
अतीक अब इस नेटवर्क को एक्सपोज करने लगा था। वो ये भी बताने वाला था कि हथियार कहां छुपाकर रखें हैं। कहीं इसलिए ही तो पेशेवर शूटर्स की मदद लेकर अतीक, अशरफ को मरवा दिया गया?
अतीक अहमद ने माना था कि उसके संबंध आईएसआई और आतंकी संगठन लश्कर से हैं। वह पाकिस्तान से हथियार मंगवाता था। पंजाब में ड्रोन के जरिए जो हथियार गिराए जाते हैं, मैं उनको खरीदता था!
अतीक ने भी माना था कि उसके पास हथियारों की कोई कमी नहीं। उसने यह भी बताया कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को भी हथियार ऐसे ही मिलते हैं!
चार्जशीट में के मुताबिक अतीक ने यह भी माना कि अगर उसे उन ठिकानों पर ले जाया जाए तो वह पैसा, हथियार और कारतूसों को बरामद करा सकता है!
प्रयागराज का ये गुंडा अब बड़े माफिया नेटवर्क और अपने संरक्षक राजनेताओं के लिए बेकार भी हो गया था। उसके जिंदा रहने से अधिक उसकी मौत कुछ लोगों के लिए जरुर फायदेमंद साबित हो सकती है। ये जांच का विषय है!
अतीक तो छोटा सा गुंडा था, लेकिन वो जिस नेटवर्क का हिस्सा था वो बहुत बड़ा था। अंधेरा कायम रहे वाली दुनिया में लादेन, बगदादी, अतीक, दाऊद किसी की कोई कीमत नहीं, बस नेटवर्क पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए!
अतीक की मौत के कई लोगों को फायदे हो सकते हैं। उसकी 10 हजार करोड़ की संपत्ति पता नहीं कहां कहां बंटी होगी?
अतीक ISI, पाकिस्तानी आतंकी संगठन, भारतीय नेटवर्क.. बहुत बड़े नेटवर्क के राज खोलने वाला था!
इस घटना से हिंदुओं को भी बदनाम करने की साजिश रची गई हो सकती है।। उत्तर प्रदेश में हिंदू मुस्लिम दंगों को हवा देने की साजिश भी हो सकती है!
अंतराष्ट्रीय स्तर पर योगी जी और हिंदू दोनो को टारगेट किया जायेगा!
देखते हैं कुछ और परतें खुलने दीजिए, धीरे-धीरे ये पूरी साजिश समझ आएगी। 
क्या उत्तर प्रदेश में हो रही कार्यवाही से एक धर्म विशेष के ख़िलाफ़ है?
2023
14 मारे गए- 5 मुसलमान
2022
14 मारे गए, 1 मुसलमान
2021
26 मारे गए, 7 मुसलमान
2020
26 मारे गए, 5 मुसलमान
2019
34 मारे गए, 12 मुसलमान
2018
41 मारे गए, 14 मुसलमान
कुल 183 ढेर हुए अभियुक्तों में 59 मुसलमान।
20 मार्च 2017 से 12 अप्रैल 2023 तक।
10,933 कार्रवाई में 23,348 बदमाश गिरफ्तार।
183 अभियुक्त मारे गए, 13 पुलिसकर्मी मारे गए।
5046 जख्मी हुए, 1443 पुलिसकर्मी ज़ख्मी।
कुल 183 ढेर हुए अभियुक्तों में 59 मुसलमान।
मारे गए कुल अभियुक्तों में 32.24% मुसलमान।

माफिया अतीक अहमद लगातार 5 बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायक रहा है। 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 – वो 5 बार जीत कर लगातार 15 वर्षों तक विधायक बना रहा। पहले 3 बार उसने बतौर निर्दलीय और फिर समाजवादी पार्टी और उसके बाद ‘अपना दल’ के टिकट पर चुनाव लड़ा। 2004 के लोकसभा चुनाव में उसने फूलपुर से बतौर सपा प्रत्याशी जीत दर्ज की। इसी साल केंद्र में UPA की सरकार भी बनी।

ये तो आपको पता ही होगा कि कांग्रेस UPA गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह को भले ही प्रधानमंत्री बनाया गया था, सत्ता की असली बागडोर सोनिया गाँधी के हाथ में थी। अब अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मारा जा चुका है। उसके बेटे असद का एनकाउंटर हो चुका है। लेकिन, कभी प्रयागराज में खौफ का दूसरा नाम रहा अतीक अहमद जब सांसद बन बैठा था तब उसने UPA सरकार की मदद की थी।

 

2004 वो साल था, जब वामपंथी दलों ने 43 सीटें जीत कर लोकसभा में अपनी अच्छी-खासी धमक बनाई थी। लेकिन, 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते से खफा होकर उन्होंने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया था। ऐसे समय में मुलायम सिंह यादव की सपा ने 36 सांसदों के साथ UPA की सरकार बचाई थी। राजेश सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘BAAHUBALIS OF INDIAN POLITICS: From Bullet to Ballot’ में इस संबंध में एक खुलासा है।

इसमें बताया गया है कि अतीक अहमद समेत 6 अपराधी सांसदों को तब 48 घंटे के भीतर रिहा कर दिया गया था, ताकि वो वोट देकर संप्रग की सरकार बना सकें। इनमें अतीक अहमद का नाम भी शामिल था अतीक अहमद ने जेल से निकल कर UPA सरकार के पक्ष में संसद में वोट डाला था। उस समय UPA के 228 सदस्य थे और उसे 44 सांसदों की ज़रूरत थी। सपा के अलावा रालोद और जेडीएस ने भी तब कांग्रेस का समर्थन किया था।