नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें केंद्र सरकार को पीएम-केयर्स फंड के अकाउंट्स, गतिविधियों और खर्च का ब्योरा उजागर करने और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) से आडिट की मंजूरी देने के निर्देश की मांग की गई थी।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाई कोर्ट से संपर्क करने और इस मामले में पुनर्विचार दाखिल करने को कहा।
याचिकाकर्ता व वकील दिव्य पाल सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि मांगी गई राहत का दायरा बिल्कुल अलग है और इसमें पीएम-केयर्स फंड की वैधता व उसका ब्योरा उजागर करने की मांग की गई है।
हाई कोर्ट ने एनजीओ सीपीआइएल (शीर्ष अदालत का फैसला) मामले के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी और फैसले पर पूरी तरह भरोसा करने में हाई कोर्ट सही नहीं था। इस पर पीठ ने कहा, ‘आपका कहना सही हो सकता है कि सभी मुद्दों पर विचार नहीं किया गया। हमें नहीं पता कि आपने बहस की थी या नहीं। आप जाइए और पुनर्विचार याचिका दाखिल कीजिए। हमें भी उसका लाभ लेने दीजिए।’
ईसाई मिशनरियों की निगरानी की मांग वाली याचिका खारिज
वहीं, दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें भारत में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए निगरानी बोर्ड गठित करने की मांग की गई थी।जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने हिंदू धर्म परिषद द्वारा दाखिल इस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार करते हुए कहा यह जनहित से ज्यादा प्रचार हित में है।
पीठ ने कहा, ‘वास्तव में इस तरह की याचिकाओं की जरिये आप सद्भाव बिगाड़ रहे हैं।’ जब पीठ ने जुर्माने के साथ याचिका खारिज करने की चेतावनी दी तो याचिकाकर्ता ने उसे वापस ले लिया। याचिका में मद्रास हाई कोर्ट के 31 मार्च, 2021 के फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें इसी याचिका को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि भारत की ताकत उसकी एकता, संप्रभुता और स्थायित्व में है और ईसाई मिशनरियों की आय की निगरानी की जानी चाहिए। साथ ही उनकी गतिविधियों को केंद्र और राज्य सरकार की सख्त निगरानी के दायरे में लाया जाना चाहिए।