Saturday, November 23, 2024

राजनीति

पसमांदा में पैठ बनाने की BJP की कोशिशों से विपक्षी दलों में बेचैनी, यूपी-बिहार में है इस समुदाय की मौजूदगी

नई दिल्ली। मुसलमानों में पसमांदा (पिछड़े) की आबादी प्रभावकारी है, किंतु अभी तक राजनीति में सवर्ण मुस्लिमों का ही वर्चस्व है। भाजपा की पसमांदा राजनीति से मुस्लिमों को वोट बैंक समझने वाले दलों में बेचैनी है। यूपी-दिल्ली में भाजपा ने पसमांदा मुस्लिमों में दिलचस्पी ली है। यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसबार इसी समुदाय को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया है। दिल्ली एमसीडी चुनाव में भाजपा ने पसमांदा समुदाय से चार को प्रत्याशी बनाकर रणनीतिक परिवर्तन का संकेत दिया है। मुसलमानों में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ी रह गई जातियों को पसमांदा कहा जाता है। देश में इनकी संख्या करीब 80 से 85 प्रतिशत है।
विपक्ष ने मुस्लिम समाज के लिए कुछ नहीं किया: पूर्व सांसद अली अनवर
उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल एवं झारखंड समेत हिंदी पट्टी के उन सभी राज्यों की राजनीति में इनकी प्रभावकारी भूमिका होती है, जहां क्षेत्रीय दलों से राष्ट्रीय दलों को कड़ी चुनौती मिल रही है। अभी तक इस समुदाय की हैसियत वोट बैंक से ज्यादा की नहीं आंकी गई है। मुस्लिम राजनीति के नाम पर शेख-सैयद और पठान को ही प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। पसमांदा के अधिकारों के लिए अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज बनाकर तीन दशकों से संघर्ष कर रहे पूर्व सांसद अली अनवर भी मानते हैं कि विपक्ष ने भी इस समुदाय के सशक्तिकरण की दिशा में कुछ नहीं किया। जब भाजपा की नजर इस पर गई तो क्षेत्रीय दलों की हलचल बढ़ गई है।
पसमांदा के प्रति भाजपा के बढ़ते कदम से विपक्ष है बेचैन
इसी दौरान यूपी में मुस्लिम बहुल आबादी वाली लोकसभा की सीटों रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में भाजपा की जीत ने विपक्षी दलों को सतर्क किया है। पसमांदा के प्रति भाजपा के बढ़ते कदम से समाजवादी पार्टी (सपा), राजद, जदयू और बसपा जैसे दल बेचैन हैं। बसपा प्रमुख मायावती के भाजपा एवं आरएसएस पर पसमांदा के मुद्दे को लेकर किए गए हमले को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा के पसमांदा प्रेम को बसपा प्रमुख ने संकीर्ण स्वार्थ एवं नया शिगूफा बताया है।