पटना। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की मुहिम शुरू की थी। इस कड़ी में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर सहित वाम दलों के कई नेता पटना आकर नीतीश कुमार से मिले। खुद नीतीश कुमार दिल्ली जाकर इस संबंध में कई नेताओं से मिले। लेकिन, पिछले एक से डेढ़ महीने में इस दिशा में कोई खास कवायद नहीं दिखी है।
सुशील मोदी ने मुहिम को बताया फ्लाप
भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार का न बिहार के बाहर कहीं प्रभाव है और न राज्य के भीतर वे अपना जनाधार बचा पाए, इसलिए विपक्षी एकता की उनकी मुहिम फ्लाप कर गई। डेढ़ महीने में न कोई प्रमुख विपक्षी नेता उनसे मिलने आया, न वे किसी से मिलने गए।
उप चुनाव में राजद को नहीं दिला पाए वोट
मोदी ने कहा कि गोपालगंज और मोकामा के उपचुनाव में नीतीश कुमार अपना लव-कुश और अतिपिछड़ा वोट राजद को ट्रांसफर नहीं करा पाए। उनका आधार वोट भाजपा की तरफ खिसक गया। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद न मल्लिकार्जुन खडगे ने और न भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी ने ही नीतीश कुमार को आमंत्रित किया। मोदी ने कहा कि विपक्षी एकता के नाम पर केसीआर बिहार आए थे, लेकिन नीतीश कुमार के साथ बात नहीं बनी।
कांग्रेस और केजरीवाल की दूरी का उठाया सवाल
सुशील मोदी बोले- केसीआर ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय बना कर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी से हाथ मिला लिया। उन्होंने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और केजरीवाल की पार्टी को एक साथ लाने में नीतीश कुमार कोई भूमिका नहीं निभा सके। दोनों जगह दोनों विपक्षी दल एक-दूसरे के खिलाफ भी लड़ रहे हैं।
सोनिया गांधी से मिले थे लालू यादव और नीतीश कुमार
सुशील मोदी के दावों के बीच यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम सही मायने में विफल हो गई है? इसका जवाब समझना बहुत मुश्किल नहीं है। दरअसल, नीतीश कुमार और लालू यादव विपक्षी एकता की मुहिम को लेकर कांग्रेस की तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिले थे। तब सोनिया गांधी ने यह कहकर दोनों नेताओं को वापस भेजा था कि उनकी पार्टी के नए अध्यक्ष के चुनाव के बाद इस पर बात होगी।