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माफिया अतीक अहमद के पकडे जाने से लेकर मारे जाने तक विपक्ष का बिलबिलाना स्वाभाविक है। उसका कारण है, जो माफिया इनका संकटमोचन बनता रहा हो, कर्जा तो चुकाना है। दूसरे, अतीक की मौत पर ‘लोकतंत्र खतरे में’ चिल्लाकर जनता को गुमराह करने वाले बताएं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उन्हीं के निवास पर हत्या होने और भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की इतनी सख्त सुरक्षा होने के बावजूद हत्या होने पर तब लोकतंत्र खतरे में क्यों नहीं था?अतीक अशरफ की पुलिस कस्टडी में यूं हत्या ना केवल योगी सरकार को बदनाम करने की साजिश है बल्कि “हिंदू आतंकवाद” की पटकथा लिखने का षडयंत्र भी हो सकती है! चर्चा है कि लगता है जिन्होंने अतीक को बनाया उन्होंने ही उसे खत्म करा दिया?
माफिया अतीक अहमद लगातार 5 बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायक रहा है। 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 – वो 5 बार जीत कर लगातार 15 वर्षों तक विधायक बना रहा। पहले 3 बार उसने बतौर निर्दलीय और फिर समाजवादी पार्टी और उसके बाद ‘अपना दल’ के टिकट पर चुनाव लड़ा। 2004 के लोकसभा चुनाव में उसने फूलपुर से बतौर सपा प्रत्याशी जीत दर्ज की। इसी साल केंद्र में UPA की सरकार भी बनी।
ये तो आपको पता ही होगा कि कांग्रेस UPA गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह को भले ही प्रधानमंत्री बनाया गया था, सत्ता की असली बागडोर सोनिया गाँधी के हाथ में थी। अब अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मारा जा चुका है। उसके बेटे असद का एनकाउंटर हो चुका है। लेकिन, कभी प्रयागराज में खौफ का दूसरा नाम रहा अतीक अहमद जब सांसद बन बैठा था तब उसने UPA सरकार की मदद की थी।
2004 वो साल था, जब वामपंथी दलों ने 43 सीटें जीत कर लोकसभा में अपनी अच्छी-खासी धमक बनाई थी। लेकिन, 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते से खफा होकर उन्होंने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया था। ऐसे समय में मुलायम सिंह यादव की सपा ने 36 सांसदों के साथ UPA की सरकार बचाई थी। राजेश सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘BAAHUBALIS OF INDIAN POLITICS: From Bullet to Ballot’ में इस संबंध में एक खुलासा है।
इसमें बताया गया है कि अतीक अहमद समेत 6 अपराधी सांसदों को तब 48 घंटे के भीतर रिहा कर दिया गया था, ताकि वो वोट देकर संप्रग की सरकार बना सकें। इनमें अतीक अहमद का नाम भी शामिल था अतीक अहमद ने जेल से निकल कर UPA सरकार के पक्ष में संसद में वोट डाला था। उस समय UPA के 228 सदस्य थे और उसे 44 सांसदों की ज़रूरत थी। सपा के अलावा रालोद और जेडीएस ने भी तब कांग्रेस का समर्थन किया था।